राजस्थान से आकर लखनऊ मे जिनकी पिछली तीन पीढ़िया कठपुतली का खेल दिखा रही है आज उनको भी जीवन जीने क लिए संघर्षो का सामना करना पड़ रहा है ये कहानी है लखनऊ के एक कलाकार की जो कठपुतली का खेल दिखाकर लोगो को प्रभावित करने के साथ साथ अपना और अपने परिवार का जीवन यापन भी करते है प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पुराने लखनऊ के खदरा मोहल्ले मे रहने वाले मोहम्मद रईस बताते है कि पहले राजस्थान मे इस खेल को उनके पूर्वज राजाओ और महाराजाओ को खुश करने क लिए दिखाया करते थे बाद मे वो लोग यहा लखनऊ आ गए और यहाँ भी नाबाबों को अपनी कलाओ के प्रदर्शन के माध्यम से प्रसन्न करने लगे और फिर यही पर बस गए, मोहम्मद रईस ये भी बताते है कि उनकी कई पीढ़ियो पुरानी ये कला आज विलुप्त होने कि कगार पर है अपने पूर्वजो से मिली विरासत को संभालने मे आज उनके बच्चे भी उनका साथ नहीं दे रहे है और खुद उनसे भी अब ये खेल दिखाने का काम बंद करने को कह रहे है।
मोहम्मद रईस बताते है कि मोबाइल ,सिनेमा और टेलिविजन के आ जाने से अब उनके खेल को देखना लोग ज्यादा पसंद नहीं करते है बस कही किसी ये यहाँ से अगर बुलावा आ जाता है कि हमारे यहाँ आकार हमारे बच्चो को खेल दिखा दो तब वही जाकर दिखा देते है, लखनऊ मे जान पहचान होने के कारण लोग बुलाया करते है और उसी से जो मिल जाता है उसी से गुजर बसर चल रहा है , वही पहले जहां भी चौराहे या मोहल्ले मे खेल दिखाना शुरू करते थे वही लोगो कि भीड़ लग जाती थी जिससे ठीक ठाक पैसे और धन मिल जाता था जिससे आसानी से परिवार का खर्च चल जाता था।
मशहूर बॉलीवुड अभिनेता “अमिताभ बच्चन” की हाल ही मे आई “गुलाबो सिताबों” फिल्म का शीर्षक भी रईस के खेल पर ही निर्भर है ,मोहम्मद रईस के खेल कि कहानी गुलाबो और सिताबों नाम कि दो महिलाओ को लेकर है जो एक राजा कि दो पत्निया थी और इसी कहानी को लेकर रईस लोगो को खेल दिखाते है जिस कहानी से प्रभवित होकर अमिताभ ने अपनी मूवी का नाम भी “गुलाबो सिताबों” रखा था ,बहरहाल इस फिल्म मे अभिनय करने का मौका तो रईस जी को नहीं मिल पाया था लेकिन अमिताभ ने मिलने क लिए जरूर रईस जी को अपने पास जरूर बुलाया था।
जब रईस से हमने इस बात पर जानकारी ली क्या फिल्म मे आपके खेल का नाम आने के बाद उसका आपके खेल के उपर कोई असर पड़ा ? तो जबाब मे रईस कहते है कि उनके खेल को पहले लोग ज्यादा पसंद करते थे लेकिन आज मोबाइल और अन्य मनोरंजन के उपकरण हो जाने के कारण लोग हमारे खेल को देखना कम पसंद करते है और इसी वजह से अब कोई ये खेल हमसे सीखता भी नहीं है नहीं तो पहले हमसे बहुत सारे लोग सीखने आते थे जो अपने यहाँ जाकर इसी खेल को दिखाते भी थे और इससे कही न कही उनकी भी रोजी रोटी चलती थी लेकिन अब लोग इससे दूर भाग रहे है, रईस जी बताते है कि कभी उनका ये खेल राजा,महाराजाओ और नाबाबों कि पसंद होया करता था लेकिन समय के साथ साथ आज यह समाज से विलुप्त होने कि कगार पर आकार खड़ा है।